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बेटियाँ सुख की छाया

दिल की बात
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एक दो दिन पहले मेरे एक पड़ोसी शाम को घर आ गये …. यहाँ वहाँ की बाते होते होते किसी बात पर बेटियों का ज़िक्र छिड़ गया ……. वो बोले बेटियाँ तो पराया धन होती है साहब …….. 15-20 साल पालन पोषण करो और फिर एक अंजान के हाथो सोप दो ….. उनकी ये बाते सुनकर मुझे भी याद आया की ये ही बात मेरी दादी कहती थी, कभी ननिहाल जाना होता तो वहाँ पर भी नानी के मुँह से ये ही शब्द सुनने को मिल ही जाते थे …. फिर कभी हम भाई बहन के बीच कुछ थोड़ा बहुत झगड़ा हो जाता तो माँ भी ये ही बात कहती थी ….. इस शब्द ने सोचने को मजबूर कर दिया की क्या सही है कि बेटियाँ पराया धन होती हैं ….

हमे अपने ही घर में कोई पराया कहे तो हम पुरुषो पर क्या गुज़रेगी ……. जबकि स्त्री के पैदा होते ही उसको पराए धन की भाँति समझा जाता है …… कुछ समय पहले तक उनके साथ वर्ताव भी ऐसा ही होता था और ये पराए जैसा ट्रीटमेंट उनके साथ कोई और नही बल्कि स्त्रियाँ ही करती थी|

कुछ हद तक तो एक समय के लिए मुझे भी लगा की वाकई बेटियाँ पराया धन होती हैं क्यूंकी पाल पोस कर, पढ़ा लिखा कर फिर एक अच्छा रिश्ते ढूंड कर उसको घर से विदा करना कितना (अब सुखद कहूँ या दुखद भाव दोनो ही आते हैं उस वक्त जब बेटी को विदा किया जाता है) बड़ा और पुण्य का काम है| किंतु बेटी को घर भी नही बिठाया जा सकता ……. पुरानी रीत चली आ रही है, एक ना एक दिन तो बेटी को विदा करना है, ये तो रीत सबको निभानी होती है चाहे वो ग़रीब हो या अमीर|

किंतु तभी ख़याल आया कि बेटी पराया धन कहाँ होती हैं ……… आपको थोड़ा सा भी कष्ट हो बेटी तुरंत हाज़िर होती है ……… यदि आपको प्यास लगी हो तो बेटी तुरंत पानी लाती है चाहे वो खाना ही क्यूँ ना खा रही हो ……..| यदि आपको सिर दर्द है तो तुरंत सिर दबाने बैठ जाती है ………| शादी के बाद भी बेटी का झुकाव अक्सर अपने माता पिता की ओर ही रहता है ….. फिर भी ये पराया धन ही कहलाती है …….. |

तो सोचो क्या कोई पराया इतना कर सकता है आप के लिए …… मुझे तो नही लगता ……. (कुछ अपवाद हो सकते हैं)

बेटियाँ सुख की छाया होती हैं फिर भी उनको बचपन से ही पराया धन कहा जाता है … क्यूँ, समझ से बाहर है ….|

हाँ आजकल कुछ आधुनिक माता पिता इनको पराया धन नही मानते|

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