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परिवार के बिखराव का असली सूत्रधार

दिल की बात
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“सास” शब्द सुनते ही कुआँरी लड़की के रोंगटे खड़े हो जाते है ……… किंतु क्या या सास नामक ये जीव सच में इतना-इतना ख़तरनाक है …… ? मंथन की ज़रूरत है ……. !

धारावाहिक तक बना दिया “सास बिना ससुराल” वो तो भला हो लेखक का जिसने कहानी को सही स्वरूप दिया हुआ है ……. |

माँ का घर

लेकिन ये बात कितनी सच है या झूठी है क्या किसी ने सोची है? लड़की जब होश संभालती है तभी से और तब तक जब तक वो शादी योग्य हो जाती है और घर के काम में माँ का हाथ बटाना शुरू करती है तभी से खाना बनाने में कुछ कमी छोड़ दे तो माँ उसको कहती है ससुराल जाएगी तो तेरी सास ताना मारेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ? सफाई में कुछ कमी हो तो वो ही पुराना राग सास कहेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ? ऐसी कोई भी छोटी मोटी ग़लती हो वो ही माँ द्वारा रेकार्ड किया गया राग “तेरी सास ताना मारेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ?” यदि दिन में ग़लती दस बार हो तो रेकार्ड दस बार ही बजता है :- “तेरी सास ताना मारेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ?” हाँ यदि लड़की दिन भर कोई ग़लती ना करे तो ये कभी नही कहा जाता “तेरी सास तेरे गुण गाएगी”| कहे भी कैसे …… ऐसे होगा तो दूसरी औरत की तारीफ हो जाएगी और अपनी तारीफ के अतरिक्त औरत किसी दूसरी औरत की तारीफ कैसे बर्दाश्त कर सकती है? किंतु माँ भूल जाती है की एक दिन वो भी सास बनेगी ….. यदि उसको कोई आईना दिखाए भी तो उसका तर्क होता है कि मैं अपनी बहू को खुश रखूँगी, उसकी हमेशा खुश रखूँगी, उसको किसी भी प्रकार की कमी नही होने दूँगी| किंतु वो भूल जाती है कि जो लड़की उसके घर में बहू बन कर आएगी क्या उसकी माँ उसको ट्रनिंग नही दे रही होगी या जो शब्द वह अपनी लड़की को सीखा रही है वही शब्द उस लड़की की माँ उसको नही कह रही होगी :- “तेरी सास ताना मारेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ?”

यहाँ ये कहना बहुत ज़रूरी है की बेटी शुरू से ही माँ के बहुत करीब होती है ख़ासकर बड़ी होने के बाद तो वह अपनी माँ को अपना ई-कॉन समझती है …… माँ की हर बात उसको सही लगती है, माँ जो कहती है वो सही है क्योंकि माँ कभी ग़लत नही होती ये उसको लगता है तभी तो माँ द्वारा दिन भर सास की ये उल्टी तारीफ बिल्कुल सच जान पड़ती है सास जब भी मुँह खोलेगी तभी ताना मारेगी …….. तारीफ तो उसके मुँह से निकलेगी ही नही ……. क्योंकि सास के शब्दकोष में तारीफ वाले शब्द है ही नही| सास ना हुई कि रक्षशी हो गयी ….. |

सास का घर

शादी करके जब लड़की अपनी ससुराल जाती तो नए महोल, नए लोगो में उसको तालमेल बैठना मुस्किल होता है| उस घर की समय सारणी, ख़ान-पान को जानने में समय लगता है| ज़्यादातर कामों में ग़लतियाँ होती है इस पर सास कुछ कह भी देती है तो माँ के शब्द जहन में घूम जाते है :- “तेरी सास ताना मारेगी तेरी माँ ने कुछ नही सिखाया ….. ?” और माँ के ये शब्द सत्य हो जाते है| ��������क दो बार ऐसा होते ही असली खेल शुरू हो जाता है और वो है आधुनिक सुविधा का उपयोग यानी दूरध्वनि यंत्र का उपयोग अब यदि सब्ज़ी बनानी होगी तो सीधा फ़ोन बजेगा अपनी माँ के पास “माँ फला सब्ज़ी कैसे बनेगी?” वो भूल जाती है की खाना उसकी ससुराल वालों खाना है ना की माँ ने| जुखाम हो गया तो सीधा फ़ोन बजेगा माँ के पास| वो भूल जाती है की जुखाम को माँ नही डॉक्टर ठीक करेगा और उस शहर के डॉक्टर का पता पति, सास को मालूम होगा माँ को नही| रात के खाने में मुंग की दाल नही खानी तो सीधा फ़ोन बजेगा माँ के पास, वो भूल जाती है की जिस घर में अब उसको रहना है वहाँ की हुकूमत माँ के हाथ में नही बल्कि सास के हाथ में है और मुंग की दाल अच्छी नही लगती तो सास को या पति को बताना पड़ेगा ताकि उसका समाधान खोजा जाए|

ग़लती की शुरुआत

छोटी से छोटी बात पर माँ को फ़ोन करने का असर होता है की जिस घर में सारी उम्र रहना है वहाँ के कमांडर को नज़र अंदाज़ कर दूसरे दूसरे कमांडर के दिशा निर्देशन में काम करना और वो भी उसके दिशा निर्देश जिसको वहाँ की नियम, रहण सहन का कोई पता नही जैसे वह अंजान होती है वैसे ही दिशा निर्देश देने वाला भी तो वहाँ के महोल से अंजान होता है| फिर वह यहाँ के बारे में सही सहला कैसे दे सकता है|

अपने घर में दूसरे का दखल कौन बर्दाश्त करेगा और यहीं से दूरियाँ शुरू हो जाती है| सास का रास्ता अलग और बहू का रास्ता अलग बीच में पिसता है बेचारा पति वो उसकी बात सुने जिसको वो अपने भरोसे इस घर में लाया था या उसकी जिसके आँचल की छाँव में वो इतना बड़ा हुआ है| परिवार टूटता है, परिवार की इस टूटन के पीछे की कहानी कहाँ से शुरू होती है? परिवार के इस बिखराव का असली सूत्रधार कौन है …….. पर्दे का सामने तो सास होती है किंतु पर्दे के पीछे का असली सूत्रधार तो माँ ही होती है …… फिर डर सास से लगना चाहिए या माँ से …. ?

सोच कर जवाब ज़रूर दें ……… !

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