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आतंकवाद दुनिया के लिए एक घिनोना सच है ……….
मेरी नज़र में आतंकवादी वो ही बनता है जो या तो बहुत अकूत धन संपदा का मलिक हो ज़रूरत से महत्वकांशी हो, अपने से बड़ा किसी को ना मानता हो (उस अद्र्श शक्ति को भी नही जिसके कारण ये संसार चल रहा है, जिसको हमने यशु, मोहम्मद, 33करोड़ हिंदू देवी देवताओं में अपनी अपनी सुविधा के अनुसार बाँट दिया है, और आज तो बहुत से भाई इनको भी जाति-पाती में बाँट रहे है) या फिर वो आतंकवादी बनता है या बनाया जाता है जिसको खाने को रोटी नसीब नही होती, पापी पेट कुछ भी करवा सकता है …… |
इंसान की फ़ितरत ही लालची होती है, वो चाहे तो रुपए की हो, शोहरत प्राप्त करने की हो आदि ये गुण हर इंसान में मिलते है चाहे ज्यदा या कम अब वो किसी भी धर्म को मानता हो मुस्लिम, हिंदू, ईसाई आदि आदि ……… | और इसी लालची फ़ितरत का फायदा कुछ लोग उठाते है वो किसी भी रूप में हो सकते है
जन्नत और स्वर्ग की चाह …………
मरने के बाद क्या होता है ये कोई नही जनता फिर भी मुस्लिम जन्नत का और हिंदू स्वर्ग का ख्वाब देखते है ………. किंतु इस ख्वाब में दिन रात का अंतर है| युवा मुस्लिम जन्नत का ख्वाब इसलिए देखता है क्योंकि उसको बताया गया होता है की जन्नत में 72 हुरे उसका स्वागत करेंगी ……….. और इसके विपरीत युवा हिंदू कि स्वर्ग की इच्छा नही होती वो तो इस धरती पर अपने कर्मों और ज़िम्मेदारियो को पूरा करके बुढ़ापे में ही स्वर्ग की इच्छा करता है ……… वो भी इसलिए कि उसको मोक्ष मिलेगा|
मर्द हमेशा से औरत का प्यासा रहा है उसको चाहे जितनी दे दें उतनी कम है, तभी तो ये भाई लोग भरी जवानी में ही जन्नत में जाना चाहते है, धरती पर तो सिर्फ़ 4 ही मिलती है और वो भी हूर नही होती वो सिर्फ़ भोग की वस्तु और प्रोडक्शन मशीन आबादी बढ़ाने का ज़रिया होती है, अपनी संख्या बढ़ा कर इस दुनिया पर राज करो …… (किंतु कुदरत भी वेकूफ़ नही है वो संतुलन बना जानती है तभी तो जितने भी अरब देश है उनमें हाहाकार मचा हुआ है)| युवाओं की इसी चाहत का फायदा ये कुछ अकूत धन संपदा के मालिक और कट्टर धरमावलंबी उठाते हैं ……… युवा वर्ग की चाहते बहुत अधिक होती है और साधन बहुत कम और साधन मिलते है सिर्फ़ रुपए से और रुपए इनके पास होते नही हैं| धनी लोग इन लोगों को धन मुहयया करवाते है और कट्टरपंथी उनको जन्नत में हूरों का सपना दिखाते है| हूरों के लालच में मुस्लिम युवा भारी जवानी में ही अपनी जिंदगी का सौदा कर दूसरों की जिंदगी को भी ख़त्म कर देते हैं, उनके कर्मों का फल कौन भोग रहा है इससे उनको कुछ मतलब नही होता क्योंकि अरब देशों में फिदाईन हमलों में जो मरते वो उन्ही के भाईबंदू होते हैं कोई ओर नहीं| ज���्नत के चक्कर में वो भूल जाते है की उनके जाने के बाद उनके माँ बाप क����� क्या होगा जिसने उसको भरोसा दिया है की उसके बाद उसके परिवार का वो ख्याल रखेंगे क्या वो अपने वादे पर खरे उतरेंगे……..
इसे विपरीत युवा हिंदू भी लालची तो होता है किंतु इतना भी नही की लालच में अपनी जान अपने ही हाथों ख्तम कर दे हाँ वो किसी की चाहत में आत्म हत्या तो कर सकता है किंतु अपने को जन्नत में पाने की खातिर किसी अन्य की जान नही ले सकता ……| इस संसार में धरती पर रह कर जो लुत्फ उठाया जा सकता है वो कहीं भी नही, यहाँ पर खुशियाँ आती है तो गम भी मिलता है और यदि गम होता तो खुशियाँ भी मिलती है हाँ इनकी मात्रा कम या ज़्यादा हो सकती है अवधि लंबी या छोटी हो सकती हैं|
स्वर्ग या जन्नत धरती पर ही हैं ……..
जन्नत या स्वर्ग क्या होती है कहाँ पर है किसी को नही पता और मरने के बाद ही क्यों नसीब होती है? यदि ये इस धरती से परे कहीं ओर हैं तो कोई ना कोई वहाँ से ज़रूर वापिस आकर वहाँ की कहानी सुनता|
स्वर्ग और जन्नत इस धरती पर ही हैं जिसकी निरोगी काया (शरीर) हो, ज़रूरते पूरी हो जाए, यदि कोई गम हो तो वो कुछ क्षण का ही हो जिसके जीवन में खुशिया ज़्यादा और गम कम हों उसके लिए यहाँ पर स्वर्ग या जन्नत है| जिसकी काया में कोई कमी या खामी हो, जिसकी जीवन में हर चीज़ की कमी हो, जिसके हिस्से में खुशियाँ ना के बराबर और गम टोकरी भर मिले हो उसके लिए यहाँ नरक है|
इसी लिए इंसानियत ये कहती है की इस धरती पर आये हो तो अपना अपना कर्तव्य निभा कर (अपने माँ बाप की सेवा, बच्चो का उचित लालन पालन कर) इस दुनिया से रुखसत होवो ……….
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