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करवट फेर कर सोई

दिल की बात
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राकेश और सरस्वती का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था, क़ानून की दृष्टि में विवाह की उम्र पूरी होते ही| जितनी जल्दी विवाह हुआ उतनी ही जल्दी उनको दुनियादारी का भी पता चल गया| मतलब घर वालो ने उनको घर से निकाल दिया| किंतु दोनो ने अपने को एक दूसरे के प्रति समर्पित किया हुआ था| जैसे अर्ध नारीश्वर का अवतार इस धरती पर उतार गया हो| दोनो की कोशिश रहती की मेरे साथी को कोई कमी ना रहे| रोज़ी रोटी चलाने के नाम पर दोनो कड़ी मेहनत करते| फिर भी इस दौर में गुज़रा चलना मुस्किल हो रहा था| किंतु जैसे भी चल रहा था दोनो एक दूसरे में मस्त थे| रसोई में यदि 5 रोटी बनती तो दोनो की कोशिश होती के सामने वाला 3 रोटी खाए और वो दो में ही गुज़रा करे| दोनो की इसी आचरण को देख देख कर लोग अपने घरों में चर्चा करते कि जोड़ी हो तो इन दोनो जैसी|

वक्त अपनी रफ़्तार से चलता जा रहा था| दोनो बहुत मेहनत करते किंतु काम फिर भी नही चलता| एक बार दोनो ऐसे ही बैठे थे दोनो ने निश्चय किया की ऐसे तो काम नही चलेगा, तो क्यू ना अपनी शिक्षा (डिग्री वाली) पूरी की जाए, ताकि सरकारी नौकरी के लिए कोशिश की जा सके| अब दोनो में बहश चली की अपनी पढ़ाई पूरी कौन करे? बहुत मान-मुननवाल के बाद सरस्वती को शिक्षा पूरी करने की हिदायत मिली| इस महँगी पढ़ाई का खर्चा अब पूरी तरह से राकेश पर था| वो जहाँ पर काम करता था वहाँ पर अब ओवर टाइम लगता, अलग से भी जो काम उसके लायक मिलता पकड़ लेता और जल्दी से जल्दी कर देता| पहले वो 8 घंटे काम करता, क्यूंकी पहले उसके साथ सरस्वती भी खर्चे में हाथ बँटाती थी, किंतु अब 12-15 घंटे काम को देने लगा था, सरस्वती की पढ़ाई का खर्चा जो था| उधर सरस्वती भी बहुत मेहनत से पढ़ाई करती और साथ ही साथ घर का काम भी करती, मौका मिलते ही राकेश भी रसोई के काम में हाथ बँटा देता था, ताकि सरस्वती की पढ़ाई में कोई हरजा ना हो| गह्ृष्टी को चलाने के चक्कर में कभी कभी छोटी-मोटी नोक-झोक भी हो जाती तो दोनो एक दूसरे से पीठ फेर कर नही सोते थे ताकि सुलह की गुंजाइश बची रहती| इसका परिणाम होता की 4-5 घंटे से ज़्यादा उनका झगड़ा रहता ही नही था|

कहते हैं जिस घर में प्रेम और शांति हो वहाँ पर लक्ष्मी का वास होता है, जो मेहनत करता है उसका मीठा फल ज़रूर मिलता है| दोनो के आपसी प्रेम और मेहनत का फल मिला सरस्वती की सरकारी नोकरी लग गयी| दोनो बहुत खुश थे कि अब तो उनके दिन फिरेंगे क्यूंकी इस रिश्वत के दौर में भी सरस्वती की नोकरी लगने में किसी भी प्रकार का रिश्वत का रूपिया खर्च नही हुआ था| सही माने में भगवान ने उनकी सुनी थी और मेहनत का फल उनको दिया था|

एक दिन सरस्वती अपने दफ़्तर का काम कर रही थी तो उसने राकेश को कहा की मेरा एक ऑफिशियल लेटर लिख दो (ऐसे काम में राकेश की पकड़ अच्छी थी, क्यूंकी जहाँ पर को काम करता था वहाँ पर वो इसी प्रकार का काम करता था, मतलब ऑफिशियल लेटर आदि लिखने का)| राकेश ने बड़ी ही शिद्दत से लेटर लिखा ताकि कोई ग़लती ना रहे और सरस्वती को दे दिया| सरस्वती ने लेटर पढ़ा और कहा लास्ट में आपने जो W/o श्री राकेश लिखा है वो काट दो| राकेश ने बड़े ही सरल भाव से कहा मैं दिन में कितनी ही शादीशुदा सरकारी नोकरी करने वाली औरतों के ऑफिशियल लेटर लिखता हूँ, सभी में W/o लिखता हूँ, आज तक किसी ने नही कटवाया बल्कि यदि भूल ज�����ता हूँ तो वो खुद लिखवा��ी हैं| सरस्वती ने तपाक से कहा ये अच्छा नही लगता| राकेश हैरान था उस रात सरस्वती करवट फेर कर सोई राकेश कुछ देर तक तो उसका इंतजार करता रहा की अब वो मेरी और मूह करेगी अ����� मेरी तरफ मूह करेगी किंतु इसी इंतजार में ना जाने कब उसकी आँख लग गयी|

दोस्तो कहानी कैसी लगी? आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों के इंतजार में…

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