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बूटों की ठक ठक पर पायल की झनक झनक…… भाग 3

दिल की बात
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विभिन्न शंकाओं के कारण हनुमान चालीसा में भी पूरी तरह मन नही लग रहा था, इसी उधड बुन से साथ ना जाने मैं कब पुलिया के पास पहुच गया| वहाँ जो देखा उसको देख कर अपनी बुद्धि पर तरस खाऊं या उस समय की परिस्थिति को कौसू समझ नही आया| धत तेरे की ये क्या? ये तो आखत्ते (एक तरह का झाड़, इसके फलों से रूई जैसा रेशा निकलता है) का पौधा है, जो हल्की हवा के झोंकों से हो रही हरकत से ऐसा लग रहा था कि वो पौधा, पौधा ना हो कर कोई बला है| ये दिल का डर था या दिमाग का बहम समझ नही पाया| जिस रास्ते से साप्ताह में लगभग 4-5 बार आना-जाना होता हो उस रास्ते पर कहाँ कौनसा पेड़ या झाड़ी है, सड़क में कहाँ पर गड्ढा है पैरों को भी मालूम होता है और वो स्वतः ही उससे बच निकलते हैं| खैर सोचने का काम दिमाग का है सो उसने सोचा और पुलिया के पास वाले आखत्ते को आफत समझ बैठा, इसमे पैरों का कोई कसूर नही था|

अब तक तो जो घटना मेरे साथ रेलवे फाटक से पुलिया तक हुई उसका कारण एक अचल जीव (वनस्पति) था| किन्तु अचानक ये क्या हुआ, जो मेरे बिल्कुल पास से शॅप से निकला, अब तो कुछ अजीब था| मेरा कलेजा हलक से बाहर आने को हुआ, दिल धौकनी की भांती धडक रहा था (कानो को सॉफ सुन रही थी उसकी आवाज), पूरा का पूरा शरीर पसीने के तरबतर हो गया, आंखो के सामने अंधेरा सा छाने लगा| ऐसा लगा की मैं आगे से गीला और पीछे से पीला हो गया हूँ| परंतु एक क्षण ही में अपने को संभाला और गर्दन और हाथो ने हरकत की| गर्दन के सहारे आंखे वहां घूमी जिस ओर शॅप से कुछ गया था, हाथो ने अपना काम किया, मतलब आगे-पीछे का मुआयना किया की सही में ही कुछ गडबड तो नही है| हाथ आश्वस्त थे और आंखो भी| वो कोई बला नही बल्कि एक साइकल सवार था जो रात के अंधेरे में जेट प्लेन की स्पीड से जा रहा था| कुछ फर्लांग बाद सड़क पर मोड था| मोड पर स्थित खंबे पर लगी ट्यूबलाईट अपने पर इतरा रही थी इतने खम्बो पर लगी सारी ट्यूब लाइटों में से वह टिमटिमा रही थी| अपनी तेजी के कारण साइकल मोड पर अन्बेलन्स हुई और सवार गिरते गिरते बचा (उसकी तेजी इतनी थी कि जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो)| उसी वक्त मुझे मालूम हुआ था की वो एक साइकल सवार था| अब पूर्ण आश्वस्त हो मैने एक लम्बी गहरी सांस ली| इस पुलिया के पास से मेरे घर की तरफ जाने के दो रास्ते थे एक तो गन्दे नाले के साथ-साथ कब्रिस्तान के पीछे से पैदल का कच्चा रास्ता जोकि बहुत ही छोटा था लगभग 10-15 मिनिट का और दूसरा पक्की सड़क का जिस पर उस समय मैं पुलिया के पास खड़ा था, जोकि पैदल लगभग 35-40 मिनिट का था| पांव जवाब दे चुके थे सो कह रहे थे छोटा रास्ता लो और जल्दी से घर पहुचो, दिल घबरा रहा था सो लम्बा और सुरक्षित रास्ता ही ठीक है पर सहमत था| दिमाग छोटे और लंबे रास्ते में से किसे चुना जाये निर्णय नही ले पा रहा था| अब तक के फालतू के दो हादसों ने मुझे हिला दिया था, सो दिल की घबराहट पैरो की थकावट पर हावी हुई और मैं सड़क के रास्ते पर चल निकला| आगे मोड के बाद सड़क पर प्रकाश व्यवस्था भी ठीक थी|

अब हनुमान चालीसा ना जाने किस कौने में गायब हो चुकी थी, और किसी फिल्मी गाने के बोल मन में हिलोरे मार रहे थे| बीच बीच में गलियों के कुत्ते आ कर मेरा मुआयना भी करते और किसी कुत्ते को अच्छा नही लगता तो वो अपनी भाषा में ऐतराज भी जता देता| कुल मिला कर ये रास्ता बड़ी ही जल्दी कट गया| हमारी बिल्डिंग आ गयी वो खंबा भी बड़े इत्मिनान से खड़ा था जिसके नीचे उन अंकल ने पेशाब किया था| मुझे उस घटना को नही दोहराना था, सो खम्बे से भरपूर दूरी बनाते हुए अपनी बिल्डिंग की सीढियों की और लपका| ओ तेरी ये क्या मैं सीढियों तक पहुचा भी नही था कि बिल्ली रास्ता काट गयी, घर पहुचने से पहले ही अपसकुन हो गया| अब क्या होगा, रुकूं या चलूं, तभी कब्रिस्तान याद आया और अंकल वाली घटना तो “बिल्ली जाये भाड़ में, भाग बेटा सीढियों की आड़ में|” मैं दो-दो सीढिया टापता हुआ सीधा छत पर पहुचा| चारपाई बिछि हुई थी और समेटा हुआ बिस्तर सीधा किया और धम से उसमे घुस गया| नींद आ ही नही रही थी और तभी याद आया की मुझे तो लघुशंका निवृति भी करनी है सो बिस्तर छोड़ एक कौने में बड़े ही इत्मिनान से कार्यपूर्ति की, ऐसा लगा जैसे गाँव बस गया हो| उफ ये डर क्या क्या नही भुला देता और क्या क्या नही याद दिला देता|

अब जैसे ही मैं इससे निवर्त्त हो बिस्तर की और चला तो ऐसा महसूस हुआ की कोई सीढियों में है उसके बूटों की ठक ठक की आवाज साफ सुनाई दे रही थी| जो धीरे धीरे तेज हो रही थी, जैसे कोई उपर की तरफ आ रहा हो| मैं लघुशंका निवरत हो चुका था और अब अपने घर में था तो मुझमे ना जाने एक ताकत सी आ गयी थी (अपने घर में तो चूहा भी शेर होता है)| हिम्मत कर सीढीयो में झांक कर देखा कोई नही था और ना ही कोई बूटों की आवाज| इत्मिनान होने के बाद में फिरसे बिस्तर के औगोश में था| किन्तु ये क्या कुछ देर के खौमोशी के बाद बूटों की आवाज फिर से आनि शुरु हो गयी| जो धीरे धीरे उपर की और ही आ रही थी जैसे कोई सीढीयो में हो और छत पर आ रहा हो| अभी मेरी हिम्मत टूटी नही थी सो उठ कर फिर से सीढीयो की तरफ गया 8-10 सीढियाँ नीचे भी गया जब कुछ नही दिखा तो उपर आ गया| सीढीयो में दोनो तरफ दरवाजे थे सो सोचा कही हवा से तो दरवाज़ा ठक ठक नही हो रहा है और मेरे वेहम के कारण मुझे जूतों के ठक ठक लग रही हो…. सो मैं दूसरी तरफ के दरवाजे जांच आया दूसरी छत से कब्रिस्तान साफ दिखता था, जिसकी तरफ देखने की हिम्मत मेरी नही हुई| अपनी छत से लगती सभी छतो का मुआयना करने के बाद एक बार फिर बिस्तर में घुसा ही था कि बूटों की वो ठक ठक शुरु हो गयी| बिल्कुल नीचे की सीढीयो से उपर की तरफ आती महसूस हो रही थी| किन्तु अब हिम्मत नही हुई की जा कर देखूँ| कुछ देर बूटों वाला सिलसिला चला फिर बंद हो गया| अब मेरी जान में जान आयी, सोचा अब तो आराम से सो सकूंगा| कहते हैं आपके लिये जो दिन खराब हो उस दिन सब खराब ही खराब होता है| बुटों की ठक ठक का सिलसिला खत्म हुए कुछ देर भी नही हुई थी कि पायलो की झनक झनक शुरु हो गयी जोकि ठीक बूटो की ठक ठक की भांती नीचे से शुरु हो उपर तक आती महसूस होती थी| अब मुझसे सहा नही गया और सोचा जो होगा देखा जायेगा, स्त्रीलिंग ध्वनी ही तो है, या फिर जो भी बला हो मुझे खाये या छोड़े, जो हाल करे| तकिया कानो पर जोर से दबाया और बिस्तर में गठड़ी (सिमट) बन गया, बिस्तर का जो कुछ हाथ में आया वो ही चारो तरफ से दबा लिया…………

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