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इसके लिये खाप क्यूं जिम्मेदार?

दिल की बात
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सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगा, यदि किसी को भी मेरी बातें दिल पर लगे तो……

दिनांक 18 अक्टूबर 12 को एक टी वी चेनल पर एक बहस छिडि हुई थी ऐंकर थे श्री रविश जी| मुद्दा था महिलाओं की आजादी के आड़े क्यूं आती हैं खाप पंचायतें| इस बहस में अपने को जागरूक कहलाने वाली कुछ महिलाएं और 4-5 खाप चौधरी आमने सामने थे| महिलाओं द्वारा किये गये सवालों का कोई उचित उत्तर नही था किसी भी खाप चौधरी के पास| मैने उस बहस को लगभग आधे के बाद ही देखा और जितना भी देखा उसका सार था खाप चौधरी लगभग जंग लगे तर्को का सहारा लिये हुए थे और अपनी बातो में खुद उलझ रहे थे| बहुत कुछ कहा गया लड़की की शादी की उम्र के बारे में, बलात्कारों के बारे में, समाज के बारे में| एक पढ़े लिखे चौधरी ने तो औरतो की समाज में भागीदारी की मान्यता को ही नकार दिया और उदाहरण दिया केरला के एक मंदिर का| कोर्ट के आदेशानुसार उस मंदिर की संपत्ती की जांच में महिलाओं को शामिल नही किया गया था (मेरी नजर में ये कुतर्क था)| कुल मिलाकर ये खाप चौधरी कैमरे के सामने महिलाओं के आगे ऐसे लगे जैसे 10-12 मुस्टंडों के बीच बेचारी एक अकेली मासूम लड़की फंस जाती हैं| कुल मिला कर खाप प्रतिनिधियों को ना नुकर करते हुए बहुत सी बातो पर औरतो के पक्ष में होना पड़ा| बलात्कार का सही अर्थ – “किसी की मर्ज़ी के खिलाफ उससे कोई काम करवाना” होता है| लेकिन अपनी मानसिकता के कारण से हम उसको सीधा सेक्स से जोड़ते हैं| तो हुआ ना खाप प्रतिनिधियों का बलात्कार|

खैर छोडो सबके अपने अपने दिमागो की अपनी अपनी सोच| यहाँ पर में एक सच्ची घटना लिखता हूँ, घटना शुरु करने से पहले एक सवाल एक बच्चा / बच्ची जो 10वीं या 11वीं में पढता हो उसकी ज्यादा से ज्यादा उम्र क्या हो सकती है? आज के समय में?

रामजी अपनी दिहाड़ी पर गया हुआ था, तभी उसके मोबाइल की घंटी घनघना उठी सामने वाले की आवाज सुनने के बाद उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी और अपनी मोटर साइकल उठा सरपट हो लिया, बिना किसी को कुछ बतलाये हुए| मंजिल पर पहुचा तो देख कर पैरो तले जमीन खिसक गई, उसकी बेटी जो 12वीं जमात में पढ़ती थी, दो लडको के साथ सुनसान स्थान पर खाली पड़े एक कोठड़े (वीरान कमरा) में घुस रही थी| ……

(पाठको से सवाल)

वहां वो लड़की क्या करने गयी थी उन दो लडको से साथ?

अब वो पिता क्या करे जो अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिये मेहनत करता है?

वो परिवार क्या करे जिसकी बेटी की ये खबर उसके पड़ोसी ने दी?

कवियो की कल्पना भी स्त्री की 15-16 से 18 वर्ष तक की उम्र पर ही अटकती है, किसी कवि की कोई कविता मैने नही देखी जिसमे उसने 25-30 वर्ष की उम्र का जिक्र कर औरत की तारीफ की हो| कुदरत भी 15-16 की उम्र में ही जवानी के हिलोरे क्यूं पैदा करती है चाहे वो लड़का हो या लड़की? यदि ये 15-16 साल की उम्र कच्ची है तो कुदरत बिल्कुल गलत है| हमारे पूर्वज बिल्कुल गलत थे जो इस उम्र में शादी करते थे, और शादी के 3-4 साल बाद लड़की को ससुराल भेजते थे (कुछ अपवाद हो सकते हैं)| विज्ञान भी कहती हैं स्वस्थ तन और स्वस�������थ मन के लिये सही समय पर खुराक जरूरी है| पश्चिमी देशो में और आजकल की कुछ पढी लिखी युवतियाँ सेक्स को सिर्फ शर��र की एक भूख मानती हैं, जबकि भारतीय जनमानस इसको सिर्फ भूख नही मानता वो कुदरत के साथ चलता हुआ संतानोपत्ती का पुण्य कर्म मानता है| जोकि एक सभ्य समाज के लिये एक स��्मान जनक स्तिथि है| असभ्य समाज (पश्चिम) की भांती नही कि आज उसके साथ ���ो परसो किसी ओर के साथ और हफ्ते बाद किसी तीसरे के साथ| भारतीय माता पिता अपनी सन्तान के लिये बहुत कुछ करते हैं, विदेशो की भांती नही की 12-13 वर्ष के बच्चे होते ही उनको खुला छोड़ दिया जाये (इस बारे में मेरा ज्ञान कम हो सकता है)| इस��� प्रकार से वो अपने बच्���ो की शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिये भी सोचते ह��ं, जिसका सामाजिक रूप शादी रूपी एक पवित्र बन्धन है, जिसको पूरे समाज की मान्यता है|

भारतीय जनमानस की मानसिकता है की एक बर जिसके साथ रिश्ता हो जाये उसी को अपना सबकुछ मानने लगता है, खास तौर से ये बात औरतों पर लागू होती है, वो बात अलग है पिछले कुछ समय से समाज गिरता जा रहा है| यदि घर वाले 15-16 की उम्र में ही लड़की की शादी के लिये लड़का खोजना शुरु कर दें तो लड़की को संयम हो जाता है कि मेरे माता पिता मेरे लिये चिंतित है और वो मेरे लिये वर खोज रहे हैं, तो उसका किसी और के प्रति शारीरिक आकर्षण (15-16 की उम्र में प्यार नही होता सिर्फ आकर्षण होता है, जिस्म को भूख लगती है तो वो भुक् मिटाने के साधन खोजता है)| फिर आज के दौर में उचित वर या वधू मिलना बड़ा ही मुश्किल काम है, तो इस खोजबीन में ही 2-4 वर्ष निकल जाते हैं तो लड़की की उम्र खुद ब खुद 19-20 हो जाती है| जोकि शादी की सही उम्र है| रही बात उसकी उच्च शिक्षा ���ी तो आज के युवा इतने जागरूक �����ैं कि उनको मालूम है यदि स्त्री भी उसके साथ मिलकर कमाई नही करेगी तो जीना दूभर हो जायेगा, तो वो शादी के बाद भी अपनी पत्नी की शिक्षा को जारी रखते हैं|

अब यदि खाप के लोग शादी को 15-16 में करने की बात करते हैं तो गलत क्या है? हाँ उनका समझाने का तरीका लोगो को हजम नही होता, या फिर उनके द्वारा किये गये कुछ फैसले गलत जरूर है, जिनका विरोध बिल्कुल जायज है| खाप कभी भी समाज की दुश्मन नही रही, उसने जो भी सोचा है वो समाज के भले के लिये ही सोचा है| आज का समय विरोध का है, अब चाहे कोई अच्छा काम भी कर ले उसका भी विरोध होना फैशन बन गया है| इसी फैशन के चलते ही खाप के उचित फैसलॉ का भी विरोध होता है| खाप कोई दो – चार लोगो का नही बल्कि छत्तीस बिरादरी के मौज्जिज लोगो का एक सामाजिक संगठन होता है, जो सभी की दलील सुनता है और फिर समाज हित में जो सही हो वो फैसला देता है| इसमे किसी के खिलाफ दुश्मनी का भाव नही होता| किन्तु फिर भी पिछले कुछ समय में जो फैलसे हुए हैं, यदि इनकी निस्पक्ष जांच हो तो जरूर इसके पीछे किसी ना किसी प्रकार की निजी शत्रुता निकल कर आयेगी| वैसे आज तक जितने भी बर्बर फैसले सामने आये हैं वो सारे गरीब, पिछड़े, और दलितों के खिलाफ ही आये हैं|

गांवों में एक कहावत भी है – “गरीब की पत्नी सबकी भाभी और साहूकार की पत्नी सबकी दादी” मतलब गरीब के उपर सबकी धौस चलती है और अमीर की ओर कोई नजर भी नही उठा सकता|

अब आप ही अपनी राय बतलाये शादी की उम्र क्या होनी चाहिए, क्या नही?

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