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उसका तेरे साथ क्या रिश्ता…… ?

दिल की बात
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“उसका तेरे साथ क्या रिश्ता…..?”, दोस्ती की एक मिसाल कायम करती कहानी लिख रहा हूँ, उम्मीद है पसंद आएगी –

एक छोटा सा शहर था, बहुत ही अमन और चैन था यहाँ, अनेकता में एकता की मिसाल था ये शहर| यहाँ पर बहू शंख्यक और कुछ अल्पसंख्यक भी थे| किंतु सबसे पहले वहाँ के बाशिंदे इंसान थे| इसी शहर के एक मोहल्ले में रहते थे दो बेहद गहरे दोस्त रहते थे – केशव और जमाल| उनके खानपान, रहनसहन, मज़हब आदि अलग अलग थे किंतु वो दो जिस्म एक जान थे| कुछ भी अच्छा या बुरा होता दोनो साथ ही मिलते थे| किसी की टाँग खिचाई करनी होती ये किसी को सताना होता तो दोनो अलग अलग होने का नाटक करते किंतु अंत में दोनो एक साथ ही नज़र आते| दोनो एक दूसरे की भी टाँग खिचाई करने में भी पीछे नही रहते थे| जैसा की मित्रों में होता है मजबूरी में एक साथ खड़े रहने कि कसमे खाते थे| जमाल का परिवार अल्पसंख्यक था, किंतु उसके परिवार को कभी अपनी संख्या कम नज़र नही आई, क्यूंकि कोई भी मुसीबत उनके सामने आती सारा मोहल्ला एक साथ खड़ा नज़र आता था| तेज़ी से सामाजिक स्तिथि बदल गयी, अल्पसंख्यक की संख्या बढ़ती गयी ना जाने कैसे उनकी संख्या में इजाफा होता गया| जिस मोहल्ले में कभी अमन और शान्ती थी वहा पर छोटे मोटे झगड़े होने लगे| बहू संख्यक राड से बाड़ अच्छी वाली नीति पर चलते हुए अपने पैत्रक स्थान छोड़ने पर मजबूर होते रहे| एक दिन ऐसा भी आया कि केशव के परिवार को भी अपना पैत्रक स्थान छोड़ना पड़ा, जमाल ने बड़ा विरोध किया था केशव के जाने का| किंतु जमाल की एक ना चली और दोनो मित्रों को बिछड़ना पड़ा| अब तो फ़ोन पर अपने दिल का हाल एक दूसरे से बाँट लेते थे|

एक बार बहुत दिन बीत गये दोनो का संपर्क नही हुआ| फुर्सत निकाल कर केशव जमाल से मिलने चला, 3-4 घंटे का सफ़र तय कर जब वो जमाल के घर की गली में पहुचा, वो चला जा रहा था और सोचता जा रहा था जमाल को अचानक जाकर अचंभित कर दूँगा, मुझे अचानक देखकर हैरान हो जाएगा वो| इन्ही ख़यालों में ना जाने कब जमाल का घर आ गया, दरवाजा खटखटाने पर जैसे ही दरवाजा खुला वो खुद हैरान था| जिस हसीन चहरे की तारीफ जमाल करता थकता नही था वो तो ये चेहरा नही हो सकता, मुरझाया सा जैसे सदियों से इसको भोजन नही मिला हो, ब्यान नही हो सकता ऐसा जर्जर से शरीर की मालिक ने दरवाजा खोला था| केशव अपना परिचय देता उससे पहले ही महिला बोली आइए भाई साहब! अंदर आ जाइए| केशव थके हुए कदमों से अंदर चला और एक कौने में रखी कुर्सी पर बैठ गया| वह अभी भी हैरान था, जिस दोस्त जमाल को जनता था वो तो बहुत ही अच्छे से अपना जीवन बिता रहा था, बल्कि कभी उसको रुपये पैसे की मदद की ज़रूरत होती थी तो वो जमाल से पूरी करता था| अब समय ने ऐसा क्या मोड़ ले लिया जो इस घर की ये हालत हो गयी, और उसको कानो कान खबर ही नही हुई| यदि जमाल की माली ह��लत खराब थी तो उसने मुझसे संपर्क करके मुझे सूचित क्यू नही किया, मेरा जैसा भी थोडा बहुत सहयोग होता तो मैं ज़रूर करता, आख़िर दोस्त मुसी���त के समय ही तो परखा जाता है| वो इसी उधेड़ �����������ुन में था क��� तभी उसके सामने पानी का गिलास आ गया| केशव ने पानी का गिलास लिया और प्रश्नो की झड़ी लगा दी| उसके जवाबों में जमाल की पत्नी ने जो खुलासा किया वो इस प्रकार से था –

भाई साहब शादी के कुछ समय तक तो सब ठीक से चल रहा था| एक दिन उनके चाचा के लड़के से उ���की किसी बात पर कहा सुनी हो गयी, और नौबत मारपिटाई तक पहुच गयी| थाना कचहरी हुआ, जमाल जी शरीफ अल्लाह के बंदे हैं, उनको छल कपट नही आता, मैं अनपढ़ थाना कचहरी के चक्करों को नही जानती थी| जमाल के चाचा ने ना जाने कौनसी चल चली जमाल जी की जमानत भी नही हो पाई, घर में जो जमा पूंजी थी वो सब इस झमेले में ख़त्म हो गयी| केशव ने एक लंबी सांस ली और कहा मुझे याद क्यू नही किया| इसपर जमाल की पत्नी बोली सब इतनी जल्दी से हुआ की ना तो खाने को होंश था और ना ही अपना, बस जमाल जी की ही चिंता लगी रहती है हर वक्त| अपनी और जमाल जी की खुद्दारी के ही कारण से हमने अपने घर वालों तक को भी इस कष्ट से दूर ही रखा है| हमारी मुसीबत है हमही को झलनी है| केशव ने कहा नही भाभी आपकी मुसीबत सिर्फ़ आपकी नही है, यदि एक दोस्त मुसीबत में हो तो वो मुसीबत सिर्फ़ उस दोस्त की नही होती वो मुसीबत दोस्तों की होती है, अब इस मुसीबत का मुझे पता चल गया है तो ये मुसीबत मेरी भी हो गयी है| अभी के लिए ये कुछ पैसे रख लो मैं अगले हफ्ते फिर से आता हूँ, कल आप जमाल से मिलने जाओ तो उससे कहना अब केशव को भी पता चल गया है, जहाँ तक हो सकेगा कम से कम घर की हालत को नही बिगड़ने दूँगा|

केशव ने अपना दोस्ती वाला असली फर्ज निभना शुरु कर दिया, अपनी पत्नी को इस विश्वास में ले रखा था, वह भी मानव धर्म को मानने वाली स्त्री थी, सो भरपूर साथ दे रही थी अपने पति का| केशव की खुद की नौकरी बहुत तनख्वाह वाली नही थी, उसमे उसके अपने घर के खर्चे प्रभावित होने लगे| फिर भी वह किसी ना किसी प्रकार से प्रस्थितियों को संभलने की कौशिश करता, ओवर टाइम लगा कर किसी प्रकार से दोनो घरों का खर्चा चला लेता था| वह नियमित रूप से जमाल के घर साप्ताह दस दिन में आता और घर की जरूरतो का सारा समान पूरा करता|

एक बार जब केशव जमाल के घर पहुचा तो देख पर हैरान हो गया, जमाल की पत्नी घायल अवस्था में पड़ी थी| उसकी इस हालत को देख केशव परेशन हो गया, उसने पूछा भाभी जी ये कैसे हो गया| जमाल की पत्नी ने कहा भई साहब ये जमाना बहुत ही खराब है, इनको औरत और मर्द का सिर्फ एक ही सम्बंध नजर आता है| अभी दो दिन पहले ही जमाल के चाचा घर आये थे आपके बारे में बहुत कुछ गलत कहा, उन्होने मुझे इतना जलील किया की कोई किसी गंदी औरत को भी नही करता| जब मैने उनका विरोध किया तो बाप बेटों ने मिलकर मेरी ये हालत कर दी, इससे भी उनका दिल नही भरा इस टूटे फूटे जिस्म को बारी बारी से नौच डाला| उन दोनो की नियत तो मुझ पर बहुत पहले से ही खराब थी, जमाल जी का जेल जाने के पीछे भी ये ही एक असली कारण था| अब अल्लाह ने मुझे खूबसूरत जिस्म दिया है तो इसमे मेरी गलती क्या है| लेकिन ये जिस्म के भूखे औरत के जज्बातों को नही जानते| जैसे खुद हैं वैसा ही दूसरे को समझते हैं, जब मेरा ये जिस्म सुख कर अस्थि पंजर हो रखा था उस समय तो मेरी पेट की भूख मिटाना कोई नही आया| जब आप मेरे लिये अल्लाह के बंदे बनकर आये और मेरे पेट की भूख को मिटाया, मेरे जिस्म में एक बार फिरसे जान आ गयी, मैं जमाल जी का लंबे समय तक इंतजार करने लायक हो सकी, उनके लिये कानूनी रूप से लड़ने लायक हो सकी, तो इनको चैन नही आया| मुझे कहा साली जिस्म की इतनी ही भूख थी तो एक काफ़िर को अपने पर क्यूं चढ़ने दिया हम मर गये थे क्या| “भाई साहब! ये दुनिया ऐसी क्यूं है क्या ये लोग एक स्त्री और पुरुष के नाते को कृष्ण और द्रोपदी के रिश्ते से नही देख सकते?”

केशव को क्रोध तो बहुत आ रहा था किन्तु वह समय, स्थ�����न और परस्थिति को जानते हुए चुप रहा| उनकी महरम पट्टी का इंतजाम कर अपने घर को चला| सारे रास्ते उसके दिमाग में सिर्फ एक ही स्वर गूँज रहा था “भाई साहब ये दुनिया ऐसी क्यूं है क्या ये लोग एक स्त्री और पुरुष के नाते को कृष्ण और द्रोपदी के रिश्ते से नही देख सकते?”| जब वो घर पहुचा तो यहाँ का भी माहौल बदला बदला था| उसकी पत्नी घर के दरवाजे पर ही खड़ी आग बबूला हो रही थी, केशव के दिखते ही बोली “तेरा उसके साथ क्या रिश्ता?” अचानक अपने ही घर से हुए इस मिसाइल हमले से केशव को सँभलने का भी मौका नही मिला| उसके मन में ढेरो सवाल फुट पड़े, मैने जो किया वो अपनी पत्नी की सहमति से किया, आज तक तो उसने किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नही की, जिस हालत में रही उसी में खुश रही, बल्कि जमाल भाई की पत्नी को किसी प्रकार की कमी ना हो इसका पूरा ख्याल रखा फिर आज ये अन्नपूर्णा अचानक दुर्गा रूप क्यू धारण् कर रही है…..?

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